विशेषांक: फीजी का हिन्दी साहित्य

20 Dec, 2020

पीपल की छाँव में

कविता | उत्तरा गुरदयाल

पीपल की छाँव में
अपने गाँव में
बचपन में झूला करती
       थी झूला
हरियाली के मौसम में
चूडियों की खनक  
पायल की झनक
राग में मिलाती राग    
  गुनगुनाती      
कभी मुस्कुराती
कभी खिलखिला कर
    हँसती,
पतझड़ आता
पत्ते झड़ते
ढेर लग जाते
कुछ से झूला सजाती
कुछ से पहाड बनाती,
आया समझ में पीपल  
    का महत्व
नित्य शाम दिया
    जलाती परिक्रमा
          करती
मन में सपने सजाती     
मन-चाह पाती
सुन्दर घर-परिवार
पाँव रखूँ कभी
 धरती पर
  कभी आँसमा
पीपल की छाँव
जैसे हो
अपना खुशनुमा-संसार
पीपल जैसे पवित्र हो
 अपना प्यार
जीवन का झूला झूले
हँसते- मुस्कुराते
जैसे बचपन वाली
पीपल की छाँव में
कभी गाँव लौटूँ तो
 माथा टेकूँ
अपने बचपन वाली
 पीपल की
लूँ आशीर्वाद
 हर सावन में
   गाँव लौटूँ
झूला झूलूँ हर बार
अपने बचपन वाली
पीपल की छाँव में।

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