विशेषांक: ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार

01 Jun, 2020

लेखन और सम्मोहन का संश्लेष : तेजेन्द्र शर्मा

रचना समीक्षा | प्रो. शशि तिवारी

अपनी सदी का बेजोड़ कहानीकार, अपनी कहानियों के अनोखे चरित्रों का विधाता, रस-सृष्टि की गंगा का भागीरथ यदि किसी को निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है तो एक ही नाम उभर कर सामने आता है और वह नाम निस्संदेह "तेजेन्द्र शर्मा" ही हो सकता है।

तेजेन्द्र शर्मा का कथासंसार अद्भुत है। यह वह सागर है जिसमें मोती ही मोती भरे पड़े हैं। जिस मोती को छुओ, वही बहुमूल्य। किसे लें, किसे छोड़ें। जो कहानी उठा लो, लगता है बस इससे अच्छा और कुछ हो ही नहीं सकता। फिर अगली कोई और कहानी, फिर और, फिर और... सबका जादू एक से एक बढ़ कर सर चढ़ कर बोलता है। जो कहानी सामने आती है, लगता है बस हम इसी के हो गये। 

हर कहानी का सम्मोहन पाठक के मन को ऐसा बाँध लेता है कि फिर छूटने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। फिर तो मन कहानी के चरित्रों के साथ उठता-बैठता है, सोता-जगता है, चलता-फिरता है। एक सच्चे कहानीकार को इससे बढ़ कर, पाठकों के दिलों पर राज करने के लिए, भला और क्या चाहिए?

तेजेन्द्र शर्मा के सम्पूर्ण कहानी-लोक में विचरण करके उस पर क़लम चलाना तो दुष्कर है। हाँ, एक समय में एक ही कहानी को लेकर मैं चलना चाहती हूँ। उसके लिए भी शब्द-भंडार कम पड़ जाएगा। अस्तु।

मेरे सामने एक अप्रतिम कहानी है "संदिग्ध"। इस कहानी ने जो भी प्रश्न उपस्थित किये, उनके उत्तर भी स्वयं ही दिये हैं। सच्ची व सार्थक रचना वही है जो प्रश्न करके न छोड़ दे, उनका उत्तर भी दे। इस कसौटी पर कहानी खरी उतरती है। और उस पर भी कभी-कभी मज़ा तो तब आता है जब कहानीकार के कहे बिना ही पाठक स्वयं उत्तर ढूँढ ले। और फिर पाठक की मेधा के लिए भी तो कुछ वर्जिश होनी चाहिए।

इस कहानी का प्रारम्भ पूरी रोचकता के साथ हुआ है। एक बार पढ़ना शुरू करके कहानी पूरी पढ़े बिना छोड़ना तो सम्भव ही नहीं है। किसी रचना की इससे बड़ी सफलता और क्या हो सकती है?

आज के युग में हमारे या दूसरे देशों के समाज में जो कुछ हो रहा है, आदमी की फ़ितरत की इन्तिहा, क्षणिक भौतिक सुख के लिए संस्कारों को ताक़ पर रख देना, स्वार्थ के लिए कुछ भी दाँव पर लगा देना, परिणाम की चिन्ता किये बिना अपनों का ही अनिष्ट और वो भी जानबूझ के कर देना... इन सबका अप्रतिम चित्रण इस कहानी में किया गया है। कहानी का अन्त कबीर की बानी याद दिलाता है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय; श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित शुभाशुभ कर्मफल का साक्षात् दर्शन करा देता है; अन्त पढ़ कर पाठक के दिल में भी ठंडक-सी पड़ जाती है।

साहित्यशास्त्र में रसनिष्पत्ति को सर्वाधिक आवश्यक तत्त्व माना गया है। 'संदिग्ध' कहानी में रस-सृजन और उसकी अनुभूति का साधारणीकरण पाठक के हृदय में संचारित हो जाता है, तब पाठक उस रस के सागर में मानो गोते लगाने लगता है। कहानी का ताना-बाना, स्वाभाविक व कृत्रिम परिस्थितियाँ, चरित्र-चित्रण, भावप्रवणता, वर्णनशैली, कहानी की गति के निराले उतार-चढ़ाव... सब मिलकर पाठक को आत्मविभोर कर देते हैं।

सार्थक रचना देश-काल से परे होकर भी मन-मस्तिष्क में घूमती रह कर भी मानो सारी सृष्टि का चक्कर लगा आती है और फिर विश्वविजय के भाव से भर कर पाठक के हृदय में विराजित हो जाती है; यही लेखनी की सार्थकता है। 'संदिग्ध' भी ऐसी ही सार्थक रचना है।

स्वदेशी समाज से निकल कर विदेशी समाज में बस जाने के कारण, विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत रहने के कारण, वहाँ के परिवेश से लेखक का गहन परिचय होने के कारण इस कहानी को अपेक्षित लाभ मिला है। यह लाभ तेजेन्द्र जी की प्राय: सभी कहानियों को आवश्यकतानुसार मिलता है, यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

जैसे ही यह वाक्य पाठक पढ़ता है कि "शायद इसी जकड़न ने शाहिद का साँस लेना दुश्वार कर दिया था"! कहानी के प्लॉट के बीज की सुगन्ध सहृदय पाठक अनुभव कर लेता है। ऐसी पारदर्शिता कहानीकार के लेखन-कौशल की परिचायक होती है और हाँ, ईमानदारी की भी।

शाहिद के मनोभावों के चित्रण में बेबाक़ी है, उसकी बेईमानी में भी ईमान झलकता है; क्योंकि वह मानव-सुलभ उन्मुक्तता और स्वच्छन्दता का पक्षधर है। किन्तु ज़रूरत से ज़्यादा चालाकी की भरपाई भी उसी को करनी पड़ती है। वैसे इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता है कि हर किसी को अपने जीवन में कुछ 'स्पेस' तो चाहिए ही। अनावश्यक नियन्त्रण व घेराबन्दी व्यक्ति को रस्सियाँ तोड़ने को विवश कर देती है। यही शाहिद के साथ हुआ। लेकिन अतिरिक्त उत्साह में यह स्वच्छन्दता उसे अनुचित कर्म के गर्त में ले गयी, ये और बात है।

कहानी की भाषा पात्रानुकूल है, उसमें बोलचाल की सहजता है। आवश्यकतानुसार हिन्दी, उर्दू, अँग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग माला में पिरोये हुए मोतियों जैसा अत्यन्त स्वाभाविक है। कहानी की शैली में अबाध प्रवाह है जो मानव-मन के मनोविज्ञान का विश्लेषण करने में सहायक है।

लेखक को अपने काल, समय की चिन्ता है। देश-विदेश में कहाँ क्या घटना घटित हो रही है, यह सजगता शाहरुख़ ख़ान के प्रकरण से ज़ाहिर हो रही है।

'संदिग्ध' की एक विशेषता यह भी है कि सभी पात्रों के चित्रण में लेखक ने न्याय किया है, चाहे वे नायक-नायिका जैसे मुख्य पात्र हों या छिट-पुट अन्य सहायक पात्र। कहानी को गति देने के सन्दर्भ में सभी महत्त्वपूर्ण हैं। सम्वाद उतने ही हैं जितने आवश्यक हैं। नारी-सुलभ स्वभाव से लेखक भलीभाँति परिचित है। शाहिदा पूछती, "जब मैं तुम्हें अपने फ़ोन और ईमेल का पासवर्ड दे सकती हूँ तो तुम क्यों नहीं?" फूँक-फूँक कर सारे क़दम रखने वाला शाहिद कभी आगे चल कर अपने ही मकड़जाल में बुरी तरह फँस जाएगा, यह अन्त पाठक को चमत्कृत कर देता है और इसी चमत्कार में ही तो रस है, इसी रस में आनन्द है, इसी में समाज के लिए शिक्षा भी है, मनुष्य का कल्याण भी है। सच्चा साहित्य वही है जो सत्य के साथ शिवत्व को भी लेकर चले, सुन्दर तो वह अपने आप हो ही जाएगा।

आयशा से फ़ोन पर बातचीत करते वक़्त शाहिदा की मनोदशा व ऊहापोह का चित्रण लेखक ने सम्वाद-शैली में किया है जिससे सम्प्रेषण की सम्वृद्धि हुई है। शाहिदा से फ़ोन पर बात करता हुआ शाहिद धूर्तता का प्रतिरूप दिखाई देता है, यह आज के आदमी का बहुत बड़ा सच है। लेखक ने इसका चित्रण करने में पूरा न्याय करते हुए पूरी ईमानदारी बरती है। झूठ के पाँव नहीं होते, 'संदिग्ध' इसका ज्वलन्त उदाहरण है। कहानी की चरम सीमा पाठक को रोमांचित कर देती है और कहानी का शीर्षक भी साभिप्राय हो उठता है।

'संदिग्ध' के माध्यम से जब मैं तेजेन्द्र शर्मा जैसे कथा के चतुर चितेरे कहानीकार की लेखनकला की बात कर रही हूँ तो इतना कुछ कहने के बाद लग रहा है जैसे अभी भी बहुत कुछ अनकहा रहा जा रहा है। किन्तु अब उस अनकहे को शायद मैं कह भी न सकूँ, वह सिर्फ़ एहसास का विषय है। आकाश के विस्तार को कैसे नाप सकते हैं !!!

प्रो.(डॉ.)शशि तिवारी
सम्पर्क : +91-8958787469
email: shashiviren@gmail.com 

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