विशेषांक: ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार

01 Jun, 2020

हिन्दी के वैश्विक प्रचारक – तेजेन्द्र शर्मा एम.बी.ई.

साहित्यिक आलेख | ज़कीया ज़ुबैरी

हमें अपने जीवन कला, संस्कृति, साहित्य, रंगमंच आदि के क्षेत्रों में कुछ ऐसे व्यक्तित्व मिलते हैं जिन्हें हम चलती फिरती संस्था कह देते हैं। ये लोग अपनी अद्भुत प्रतिभा से हमें प्रभावित करते रहते हैं। ब्रिटेन के साहित्य एवं समाज से जुड़े कथाकार तेजेन्द्र शर्मा एक ऐसी ही शख़्सियत हैं। यह कहना अनुचित न होगा कि अभिमन्यु अनंत के बाद प्रवासी साहित्य का सबसे पहचाना नाम तेजेन्द्र शर्मा ही है।

तेजेन्द्र शर्मा किसी एक विधा से जुड़े व्यक्ति का नाम नहीं है। वे कहानीकार, कवि, ग़ज़लकार, मंच अभिनेता-निर्देशक, सिनेमा कलाकार, टीवी सीरियल लेखक, रेडियो पत्रकार, संपादक, मंच संचालक होने के साथ साथ ’कथा यूके’ संस्था के महासचिव भी हैं। हिन्दी भाषा और साहित्य को ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स एवं हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में ले जाने का श्रेय हम सीधे-सीधे तेजेन्द्र शर्मा को दे सकते हैं। 

तेजेन्द्र शर्मा ब्रिटेन के एक अकेले कथाकार हैं जिनके लेखन पर धर्मवीर भारती, नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, कृष्णा सोबती, ममता कालिया, परमानन्द श्रीवास्तव, गोपाल राय, असग़र वजाहत, ज्ञान चतुर्वेदी, प्रेम जनमेजय, हरि भटनागर, धीरेन्द्र अस्थाना से लेकर युवा पीढ़ी के प्रभात रंजन, विजय शर्मा, साधना अग्रवाल, अजय नावरिया, पंकज सुबीर एवं कमलेश कुमारी तक ने लिखा है। 

धर्मवीर भारती ने 1990 में ही तेजेन्द्र शर्मा की प्रतिभा को पहचानते हुए लिखा था, “तेजेन्द्र के पास समस्याओं को उठाने का साहस है, पात्र निर्माण करने की शक्ति है, कथानक का निर्वाह है...।” किसी भी युवा लेखक के लिये भारती जी का यह वाक्य किसी ब्रह्मवाक्य से कम नहीं रहा होगा। 

तेजेन्द्र शर्मा जब ब्रिटेन में आकर बसे तो उनके पहले तीन कहानी संग्रह – काला सागर (1990), ढिबरी टाइट (1994) एवं देह की कीमत (1999) वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हो चुके थे। उन्हें अन्य पुरस्कारों के अतिरिक्त महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी का सम्मान तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी के हाथों प्राप्त हो चुका था यानि कि वे एक प्रतिष्ठित युवा कथाकार के रूप में स्थापित हो चुके थे।

तेजेन्द्र शर्मा ने 1995 में ही अपनी दिवंगत कथाकार पत्नी इन्दु शर्मा की याद में एक सम्मान की स्थापना कर दी थी। इस कार्यक्रम का आयोजन मुंबई में किया जाता था। 

लन्दन के साहित्य जगत का जायज़ा लेते हुए तेजेन्द्र शर्मा ने नई शताब्दी के साथ ही वर्ष 2000 में ’इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देते हुए उसके आयोजन की शुरूआत भारतीय उच्चायोग के सांस्कृतिक विंग नेहरू सेन्टर में की। उस समय इन्द्रनाथ चौधरी नेहरू सेन्टर के निर्देशक थे और कार्यक्रम में लक्ष्मीमल सिंघवी जी भी शामिल हुए थे। पहला अंतरराष्ट्रीय सम्मान श्रीमती चित्रा मुद्गल को उनके उपन्यास ’आंवां’ के लिये दिया गया। भारत से उपन्यासकार जगदम्बाप्रसाद दीक्षित इस कार्यक्रम में शामिल हुए।

फिर तो काफ़िला चल निकला और उनकी संस्था ’कथा यू.के’ ने भारत और ब्रिटेन के बीच एक पुल बना डाला। हर साल एक कथाकार भारत से आता और उसका सम्मान लंदन के नेहरू सेन्टर में किया जाता। इस प्रकार भारतीय कथाकारों के साथ ब्रिटेन के हिन्दी लेखकों का संवाद बढ़ा। उन्हें कहानी में आए बदलावों की जानकारी हुई और ब्रिटेन में हिन्दी कहानी में सक्रियता का एक नया दौर शुरू हो गया।

जब वे लन्दन आए तो उस समय कवि तो बहुत थे मगर कहानी के क्षेत्र में उषा राजे सक्सेना, गौतम सचदेव, दिव्या माथुर, उषा वर्मा, भारतेन्दु विमल, आदि की छिटपुट रचनाएँ प्रकाशित हो रही थीं। हालात यही थे कि किसी भी लेखक का अपना कहानी संग्रह अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ था। कथा यू.के. के माध्यम से तेजेन्द्र शर्मा ने लंदन में कथा गोष्ठियों के आयोजन की शुरूआत की। पहली गोष्ठी दिसम्बर 1999 में लंदन के उपशहर हैरो में रखी गई। फिर तो इन गोष्ठियों का सिलसिला चल निकला और ब्रिटेन के कहानीकारों की शिरकत इन कार्यक्रमों में बढ़ती गई।

इन गोष्ठियों में पढ़ी गई पहली दस कहानियों का एक संकलन – कथा लंदन - भी प्रकाशित किया गया जिसका संपादन कथाकार सूरज प्रकाश ने किया। इन गोष्ठियों में उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, उषा वर्मा, शैल अग्रवाल, कादम्बरी मेहरा, महेन्द्र दवेसर, नीना पॉल, और स्वयं मैंने भी अपनी कहानियों का पाठ किया है। आज ब्रिटेन में महेन्द्र दवेसर, दिव्या माथुर, उषा राजे सक्सेना, कादम्बरी मेहरा, उषा वर्मा जैसे कई कथाकार हैं जिनके तीन-तीन चार-चार संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। नीना पॉल के तो तीन उपन्यास प्रकाशित हो गये हैं।

तेजेन्द्र शर्मा ने ब्रिटेन के लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिये समय-समय पर कहानी कार्यशालाओं का भी आयोजन किया है जिसमें वे हिन्दी कहानी की परम्परा के बारे में बात करते हुए कहानी विधा की पूरी यात्रा लेखकों को समझाते हैं और कहानी में आए सभी परिवर्तनों की जानकारी देते हैं। वे भाषा और मुहावरों के स्तर पर आई तबदीलियों की भी बात करते हैं। अरुण सभरवाल और पुष्पा रॉव दो ऐसे ही नाम हैं जिन्होंने इन कार्यशालाओं से प्रभावित हो कर ही कहानी लिखनी शुरू की। आज अरुण जी के दो और पुष्पा जी का एक कहानी संग्रह प्रकाशित भी हो चुके हैं। कहना न होगा कि ब्रिटेन के कहानीकारों के लिये तेजेन्द्र शर्मा एक मशाल की तरह काम करते हैं। 

तेजेन्द्र शर्मा ने हिन्दी साहित्य को लेकर अपनी गतिविधियों को केवल ब्रिटेन तक सीमित नहीं रखा है। वे कहानी कार्यशालाओं का आयोजन कनाडा, अमरीका और भारत में भी करते रहे हैं। उनकी इन कार्यशालाओं का लाभ पूरे विश्व के कथाकार उठा रहे हैं। 

’कथा यूक’ और तेजेन्द्र शर्मा जैसे एक दूसरे के पर्याय बन गये हैं। ’इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ के ज़रिये अब तक बीस भारतीय कथाकारों को सम्मानित किया जा चुका है। इन्दु शर्मा कथा सम्मान के 20 विजेताओं के नाम इस प्रकाऱ हैं – गीतांजलिश्री (1995), धीरेन्द्र अस्थाना (1996), अखिलेश (1997), देवेन्द्र (1998), मनोज रूपड़ा (1999)। इन साहित्यकारों का सम्मान मुंबई में किया गया था और ये आयु में चालीस वर्ष से छोटे थे। 

अंतरराष्ट्रीय होने के बाद इन्दु शर्मा कथा सम्मान से अलंकृत कथाकार हैं – चित्रा मुद्गल (2000), संजीव (2001), ज्ञान चतुर्वेदी (2002), एस.आर हरनोट (2003), विभूति नारायण राय (2004), प्रमोद कुमार तिवारी (2005), असगर वजाहत (2006), महुआ माजी (2007), नासिरा शर्मा (2008), भगवानदास मोरवाल (2009), हृशीकेश सुलभ (2010), विकास कुमार झा (2011), प्रदीप सौरभ (2012), पंकज सुबीर (2013), सुन्दर चन्द ठाकुर (2014)।

इन्दु शर्मा कथा सम्मान से जुड़े मुख्य अतिथियों एवं अध्यक्षों की सूचि भी ख़ासी महत्वपूर्ण है जिसमें डॉ. धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, मनोहर श्याम जोशी, जगदम्बा प्रसाद दीक्षित, ज्ञानरंजन, कामतानाथ, गोविन्द मिश्र, रवीन्द्र कालिया, गिरीश कारनाड एवं पवन वर्मा जैसे साहित्यकार शामिल हैं। 

जहाँ एक ओर तेजेन्द्र शर्मा ने कथा यूके के माध्यम से भारत के हिन्दी कथा साहित्य को विश्व पटल पर रेखांकित किया वहीं ब्रिटेन में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य को रेखांकित करने के लिये अपने माता-पिता के नाम पर ’पद्मानन्द साहित्य सम्मान’ को स्थापित किया। इस सम्मान के तहत कोई विधा तय नहीं की गई थी। इस कारण इस सम्मान से उपन्यास, कहानी, कविता, ग़ज़ल, गीत, फ़िल्म समीक्षा आदि पर रची पुस्तकें सम्मानित की जा सकीं। इस सम्मान का आयोजन भी ब्रिटेन की संसद में ’इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ के साथ ही होता है। 

पद्मानन्द साहित्य सम्मान से अलंकृत साहित्यकारों की सूचि में शामिल हैं – सत्येन्द्र श्रीवास्तव (2000 - कविता), दिव्या माथुर (2001 - कहानी), नरेश भारतीय (2002 - लेख), भारतेन्दु विमल (2003 - उपन्यास), अचला शर्मा (2004 – रेडियो नाटक), उषा राजे सक्सेना (2005 - कहानी), गोविन्द शर्मा (2006 – फ़िल्म स्क्रिप्ट लेखन), गौतम सचदेव (2007 - कहानी), उषा वर्मा (2008 - कहानी), मोहन राणा (2009 - कविता), महेन्द्र दवेसर (2010 - कहानी), कादम्बरी मेहरा (2011 - कहानी), नीना पॉल (2012 - उपन्यास), सोहन राही (2013 - गीत / ग़ज़ल), कृष्ण कन्हैया (2014 - कविता)। इस सम्मान से अलंकृत लेखक केम्ब्रिज, लन्दन, यॉर्क, बाथ, लेस्टर जैसे शहरों से चुने गये।

कथाकार अजय नावरिया के शब्दों का इस्तेमाल करें तो “प्रवासी साहित्यकारों में तेजेन्द्र शर्मा एक ध्रुवतारे की तरह हैं – चमकीले और अडिग।” तेजेन्द्र शर्मा की कहानियाँ क़ब्र का मुनाफ़ा को वरिष्ठ आलोचक डॉ. पुष्पपाल सिंह ने सदी की महान कहानियों में शामिल किया है। हिन्दी कहानी के सबसे महत्वपूर्ण आलोचक डॉ. गोपाल राय ने अपने ग्रन्थ हिन्दी कहानी का इतिहास में तेजेन्द्र शर्मा के लेखन को तीन पृष्ठ दिये हैं। रचना समय पत्रिका (भोपाल), आधुनिक साहित्य (दिल्ली) एवं नई धारा (पटना) ने तेजेन्द्र शर्मा पर केन्द्रित अपने विशेषांक प्रकाशित किये हैं। 

स्वयं तेजेन्द्र शर्मा ने आधुनिक साहित्य, रचना समय, प्रवासी संसार, शोध दिशा जैसी पत्रिकाओं के प्रवासी साहित्य विशेषांकों का अतिथि-संपादक के रूप में संपादन किया है। इन पत्रिकाओं में उन्होंने यू.ए.ई., यूरोप, ब्रिटेन, अमरीका, कनाडा, सिंगापुर, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के प्रवासी साहित्यकारों की रचनाएँ शामिल की हैं। 

कथा यू.के. ने यमुना नगर (हरियाणा) के डी.ए.वी. गर्ल्ज़ कॉलेज के साथ मिल कर चार साल तक प्रवासी हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया जिनमें राजेन्द्र यादव, मृदुला गर्ग, मैत्रेयी पुष्पा, गोपेश्वर सिंह, महेश दर्पण, भारत भारद्वाज, साधना अग्रवाल, विजय शर्मा जैसे महत्वपूर्ण नामों के साथ-साथ विदेश से सुषम बेदी, स्नेह ठाकुर, जय वर्मा, नीना पॉल, दिव्या माथुर, अचला शर्मा, डॉ. कृष्ण कुमार और मैं स्वयं शामिल हुए। ठीक इसी तरह का एक सम्मेलन मुंबई के एस.आई.ई.एस. कॉलेज के साथ मिल कर भी आयोजित किया गया जिसमें असगर वजाहत जैसे महत्वपूर्ण साहित्यकार ने शिरकत की। 

तेजेन्द्र शर्मा जब-जब भारत जाते हैं तो किसी न किसी विश्वविद्यालय में उनका लेक्चर आयोजित किया ही जाता है। वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया दिल्ली, डॉ. अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली, खालसा कॉलेज मुंबई, औरंगाबाद आदि शहरों में समय समय पर प्रवासी साहित्य पर अपने विचार रखते हैं। 

तेजेन्द्र शर्मा मुंबई की हिन्दी फ़िल्मों को भाषा के प्रचार-प्रसार के लिये महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका कहना है कि हिन्दी फ़िल्मों के गीतों (विशेष कर 1950-1960 के दशकों में) में साहित्य प्रचुर मात्रा में मौजूद है। इसलिये वे गीतकार शैलेन्द्र और साहिर लुधियानवी पर नब्बे-नब्बे मिनट के पॉवर पॉइण्ट प्रेज़ेन्टेशन बना कर ब्रिटेन, कनाडा और भारत में दिखा चुके हैं। वे मानते हैं कि हिन्दी सिनेमा एक तरह से सॉफ़्ट ग्लोबल पॉवर है। उन्होंने एक प्रेज़ेन्टेशन के माध्यम से हिन्दी गीतकारों (प्रदीप, भरत व्यास, इंदीवर, नीरज एवं नरेन्द्र शर्मा आदि) की रचनाओं में साहित्य खोजने का प्रयास भी किया है।

स्वयं तेजेन्द्र शर्मा के कई कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें शामिल हैं - स्मृतियों के घेरे (समग्र कहानियाँ भाग-1) (2019), नयी ज़मीन नया आकाश (समग्र कहानियाँ भाग-2) (2019), मौत... एक मध्यांतर (2019), ग़ौरतलब कहानियाँ (2017) ; सपने मरते नहीं (2015); श्रेष्ठ कहानियाँ (2015); मेरी प्रिय कथाएँ (2014), प्रतिनिधि कहानियाँ (2014); दीवार में रास्ता (2012); क़ब्र का मुनाफ़ा (2010); सीधी रेखा की परतें (2009); बेघर आंखें (2007); यह क्या हो गया ! (2003); देह की कीमत (1999); ढिबरी टाईट (1994); काला सागर (1990)।  

ये घर तुम्हारा है... (2007 - कविता एवं ग़ज़ल संग्रह); मैं कवि हूं इस देश का (द्विभाषिक कविता संग्रह)

तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों का बहुत सी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। Grave Profits – English ढिबरी टाइट- पंजाबी, कल फेर आंवीं- पंजाबी, पासपोर्ट का रंगहरू नाम से नेपाली में, निर्वाचित काहिनी (बांग्ला) तथा इँटों का जंगल (2007) नाम से उर्दू में भी उनकी अनूदित कहानियों के संग्रह प्रकाशित हुए हैं। तेजेन्द्र शर्मा की कहानियाँ उड़िया, मराठी, गुजराती एवं अंग्रेज़ी में भी अनूदित हो चुकी हैं।

तेजेन्द्र शर्मा एकमात्र प्रवासी हिन्दी लेखक हैं जिनके लेखन पर गंभीर आलोचनात्मक ग्रन्थ लिखे गये हैं। तेजेन्द्र शर्मा – वक़्त के आइने में (2009), हिन्दी की वैश्विक कहानियाँ (2012), कभी अपने कभी पराये (2015), प्रवासी साहित्यकार श्रंखला (2017), मुद्दे एवं चुनौतियाँ (2018), तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार (2018), कथाधर्मी तेजेन्द्र (2018), वैश्विक हिन्दी साहित्य और तेजेन्द्र शर्मा (2018) प्रवासी कथाकार तेजेन्द्र शर्मा (2019), प्रवासी हिन्दी साहित्य और तेजेन्द्र शर्मा (2019), भारतेतर हिन्दी साहित्य और तेजेन्द्र शर्मा (2019)

विभिन्न विश्वविद्यालयों से तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों पर अब तक दो पीएच. डी. और दस एम. फिल. की डिग्रियाँ हासिल की गयी।

तेजेन्द्र शर्मा के लेखन को समय-समय पर भारत एवं विदेशों में सम्मानित भी किया जाता रहा है। वे विश्व के एकमात्र ऐसे हिन्दी के लेखक हैं जिन्हें ब्रिटेन की महारानी ने हिन्दी साहित्य की सेवा के लिये ’मेम्बर ऑफ़ दि ब्रिटिश एम्पायर’ की उपाधि से सम्मानित किया है। भारत के राष्ट्रपति श्रीप्रणव मुखर्जी ने उन्हें राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में वर्ष 2014 में डॉ. मोटुरी सत्यनारायण सम्मान – 2011 से सम्मानित किया। वहीं उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने प्रवासी साहित्य भूषण 2013, हरियाणा साहित्य अकादमी 2012, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी अकादमी 1995, अंतरराष्ट्रीय स्पंदन कथा सम्मान 2012 आदि सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं। 

ब्रिटेन से निकलने वाली एकमात्र पत्रिका पुरवाई का संपादन भी तेजेन्द्र शर्मा ने सँभाला हुआ है। वे इस पत्रिका के बहुत से विशेषांक प्रकाशित कर चुके हैं। जिनमें सिनेमा विशेषांक और मिथक विशषांक ख़ासे चर्चित हुए। 

लेखक तेजेन्द्र शर्मा एवं कार्यकर्ता तेजेन्द्र शर्मा को अलग कर पाना आसान काम नहीं है। यह एक ऐसी कठिन डगर है जिस पर केवल तेजेन्द्र जैसे व्यक्तित्व ही चल सकते हैं। कार्यक्रमों का आयोजन हो, संपादन हो, या फिर लेखन तेजेन्द्र शर्मा हर जगह अव्वल दिखाई देते हैं। 

भारतीय उच्चायोग लंदन ने इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया था जब उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा, लेखक को हरिवंशराय बच्चन सम्मान से अलंकृत किया और वहीं उनकी संस्था कथा यू.के. को ब्रिटेन की सर्वोत्तम हिन्दी संस्था का सम्मान भी दिया। 

तेजेन्द्र शर्मा सही मायने में एक हरफ़नमौला व्यक्तित्व हैं। मामला चाहे संचालन का हो या फिर कथा पाठ का तेजेन्द्र को उनमें सही महारथ हासिल है। तेजेन्द्र शर्मा ने विश्व भर के शहरों में कहानी पाठ किया है। न्यूयॉर्क, टोरोण्टो, लन्दन, बरमिंघम, नॉटिंघम, यॉर्क, वेल्स, दिल्ली, मुंबई, शिमला, लखनऊ, भोपाल, यमुना नगर, चण्डीगढ़ जैसे तमाम शहरों ने उनके कथा वाचन का आनन्द उठाया है। तेजेन्द्र केवल कहानी का पाठ नहीं करते बल्कि अपनी आवाज़ के उतार चढ़ाव से पूरी कहानी को श्रोता के सामने जीवित कर देते हैं। 

भारतीय उच्चायोग लन्दन को जब कभी अपने कार्यक्रमों के संचालन के लिये किसी की आवश्यकता होती है तो उनकी निगाह भी तेजेन्द्र शर्मा पर ही आ कर रुकती है। 15 अगस्त को स्वतन्त्रता दिवस का कार्यक्रम हो या फिर नये उच्चायुक्त का आगमन संचालन का भार तेजेन्द्र शर्मा को ही उठाना होता है। कवि सम्मेलन का संचालन तो तेजेन्द्र शर्मा इतनी कुशलता से करते हैं कि कवियों की कविताओं से अधिक उनके संचालन का लुत्फ़ आता है। 

उत्सवधर्मिता तेजेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण पहलू है। निरंतर हिन्दी भाषा और साहित्य का उत्सव मनाना उनके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत या विदेश से किसी भी साहित्यकार के ब्रिटेन आगमन का एक ही अर्थ है कि तेजेन्द्र शर्मा उनके लिये एक कार्यक्रम आयोजित करेंगे।

तेजेन्द्र का आग्रह है कि प्रवासी साहित्यकारों को अपने साहित्य में अपने अपनाए गये देश के सरोकारों को दिखाना चाहिये। वे मानते हैं कि नॉस्टेल्जिया एक हद तक साहित्य के लिये ज़रूरी है मगर किसी भी लेखक को बेहतर साहित्य रचना करने के लिये नॉस्टेल्जिया से बाहर आना ज़रूरी है। उनकी कहानियाँ क़ब्र का मुनाफ़ा, होमलेस, एक बार फिर होली, पापा की सज़ा, बेतरतीब ज़िन्दगी, कोख का किराया, ये क्या हो गया, ज़िन्दगी और मौत के बीच की चुप्पी आदि हमारा परिचय ब्रिटेन के जीवन करवाती हैं। उनकी रचनाओं में ब्रिटेन केवल एक ’लोकेल’ की तरह नहीं आता बल्कि उनके रचनासंसार का एक हिस्सा बन जाता है। 

राजेन्द्र यादव को तेजेन्द्र शर्मा का “आर्ट ऑफ़ नैरेशन” पसन्द है तो परमानन्द श्रीवास्तव को उनकी कहानियाँ “जीवनधर्मी” लगती हैं। वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. कमलेश कुमारी के अनुसार, “मृत्यु न जाने कितने रंगों, कितने रूपों, कितनी छवियों अन्तर्दृष्टियों से तेजेन्द्र की कहानियों में झाँकती है। ऐसा लगता है कि तेजेन्द्र शर्मा जीवन के ही नहीं मृत्यु के भी शोधार्थी हैं।” 

टेम्स नदी और गंगा की तुलना करते हुए तेजेन्द्र कहते हैं - “बाज़ार संस्कृति में नदियाँ, नदियाँ ही रह जाती हैं / बनती हैं व्यापार का माध्यम, माँ नहीं बन पाती हैं।”

ब्रिटेन में तेजेन्द्र शर्मा के हिन्दी योगदान को यदि हम शब्दों में बाँधने का प्रयास करें तो यही कहा जा सकता है कि ब्रिटेन में हिन्दी के दो ही काल हैं.... पहला तेजेन्द्र शर्मा के ब्रिटेन आने से पहले और दूसरा उनके ब्रिटेन आने के बाद!

Mrs. Zakia Zubairi
115 The Reddings, 
Mill Hill, 
London NW7 4JP 
(United Kingdom),
Email: zakiiaz@gmail.com; 
Mobile: 00-44-75957353390
 

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