विशेषांक: ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार

01 Jun, 2020

आधुनिक यथार्थ के लेखक तेजेंद्र शर्मा

शोध निबन्ध | डॉ. विशाला शर्मा

एक परिपूर्ण कहानीकार के रूप में हिंदी साहित्य में अपनी लेखनी की अमिट छाप छोड़ने वाले तेजेंद्र शर्मा के नाम से आज साहित्य जगत परिचित है। दिल से लिखनेवाले इस कहानीकार की कहानियाँ परिपक्व हैं। वे चरित्रों के दर्द दिल में महसूस करते हैं, जिनकी कहानियाँ एक शोध है जिसमें सामाजिक बन्धनों का अनुबंध है, वर्तमान की वास्तविकता है और कल्पना में भी सत्य एक शोध बनकर उभारता है। यथार्थ का अनुभव परत-दर-परत दिखाई देता है। संवेदना की तीव्रता और आधुनिक यथार्थ का मिश्रण तथा दृष्टि को और अधिक पैनी बनाते हैं। तेजेंद्र जी की घनिष्ट मित्र ज़किया ज़ुबेरी लिखती है, ’तजेंद्र शर्मा की लेखन प्रक्रिया एक मामले में अनूठी है। वे अपने आसपास होनेवाली घटनाओं को देखते हैं, महसूस करते हैं और अपने मस्तिष्क में मथने देते हैं, जब तक कि घटना अपनी कहानी का रूप ग्रहण नहीं कर लेती। तेजेंद्र जितने अच्छे कहानीकार हैं उतने ही अच्छे इन्सान हैं और बेहद अच्छे दोस्त भी। तेजेंद्र जी एक ख़ुदा तरस इन्सान हैं। जो कि ज़मीनी हक़ीक़त से जुदा है। यह संवेदनशील व्यक्ति केवल कहानीकार ही नहीं, कवि भी है और मानव मन की दुखती रगों को पकड़ता है।’1

तेजेंद्र शर्मा ने अपनी लेखनी से विभिन्न प्रयोग किये हैं लेकिन झूठ गढ़ने की एक अनिवार्य शर्त से बचे रहे। क़ब्र का मुनाफ़ा, देह की कीमत, पासपोर्ट का रंग, ढिबरी टाइट एवं कालासागर जैसी सशक्त कहानियाँ हिंदी पाठकों के लिए एक उपलब्धि हैं। आधुनिक जीवन के नए पक्ष और नए-नए संदर्भ हमें तेजेंद्र शर्मा की कहानियों में देखने को मिलते हैं। जीवन के सत्यों का सामना करता उनका प्रत्येक पात्र अनुभवों के संसार से पैदा हुआ है और इसलिए पात्र निर्माण की जो शक्ति इस लेखक में दिखाई देती हैं, वह असाधारण है। नए संदर्भों को लेकर कहानी की उत्पत्ति भी आपके साहित्य जगत की विशेषता है, जैसे पंजाब के आतंकवाद पर ’कालासागर’ कहानी तो ’ढिबरी टाइट’ कहानी संग्रह की कहानियाँ शोक गीत बन गयी हैं। नारी विमर्श को लेकर देह की कीमत, एक बार फिर होली, कल फिर आना, मुट्ठी भर रौशनी, फ्रेम के बाहर, सिलवटें, इन्तज़ाम, कैंसर, भँवर आदि कहानियों के माध्यम से चुपचाप स्त्री अस्मिता, नारी विद्रोह और स्त्री की ज़रूरतों को उजागर किया हैं। बाल मनोविज्ञान को विश्लेषित करती उनकी कहानी फ्रेम के बाहर, मुट्ठी भर रोशनी तथा क़ब्र का मुनाफ़ा वैश्वीकरण से उत्पन्न परिवेश और बाज़ार अर्थव्यवस्था की ओर इशारा करती हैं। इस कहानी की थीम पश्चिम का बाज़ारवाद जहाँ मौत को भी विज्ञापन के सहारे आकर्षक और मोहक बनाया जा सकता है क्योंकि वहाँ अपेक्षाकृत भौतिक सुविधाएँ ज़्यादा हैं। इसलिए भी आपस में प्रतिस्पर्धा है। इस कहानी में मौत और क़ब्र नए विस्तार पाते हैं। लन्दन बसने से पहले जहाँ तेजेंद्र की कहानियों में मौत एक दूसरे रूप में आती है वहीं लन्दन प्रवास के बाद वे मौत को भी एक खिलंदड़े अंदाज़ में सामने लाते हैं। यानि उनकी कहानियों में रचनात्मक प्रौढ़ता साफ़ दिखाई देती है। लाश के मेकअप का सामान और उसका दुल्हन की तरह शृंगार करने का दावा कहानी को नए आयाम प्रदान करते हैं। कंपनी का दावा कि आग से झुलसे चेहरे या फिर दुर्घटना से विकृत चेहरे को भी ख़ूबसूरत बना सकते हैं, आनेवाले भविष्य की भयावह सोच को सामने लाता है।2 

निश्चित रूप से ’क़ब्र का मुनाफ़ा’ कहानी बाज़ारवाद के दुष्परिणाम को रेखांकित करती हैं। साथ ही हमारी संवेदनाओं को जगाने का कार्य करती है। कहानी में मानवीय मूल्यों की टकराहट है। इसी तरह ’हथेलियों में कम्पन’ कहानी एक अद्भुत कहानी है। भारतीय संसार और कर्मकांडों का खुला चिटठा इस कहानी में देखने को मिलता है। हिन्दू धर्म में मृत्यु एक संस्कार के रूप में देखी जाती है। परिजन मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति हेतु अस्थियाँ हरिद्वार ले जाते हैं। वहां के कर्मकांडों की दुनिया बड़ी विचित्र है। नरेन मौसा इस कहानी के प्रमुख पात्र हैं। परिवार में किसी की भी मृत्यु पर हरिद्वार जाने का दायित्व उन्हीं पर है। कहानी के उत्तरार्ध में पाठक की संवेदना नरेन मौसा के साथ घुलती-मिलती अश्रुपूर्ण स्थिति में दिखलाई देती है। पूर्व में अपने पिता, चाचा, मामा, दो साड़ुओं, एक साली, एक साले, अपने समधी और कई दोस्तों की अस्थियाँ वे हरिद्वार पहुँचा चुके हैं किन्तु आज गंगा उलटी बहने वाली है। नरेन मौसा के तीस वर्षीया बेटे की अस्थि विसर्जन का समय है। “पुत्र अपने पिता की मृत्यु लिखकर हस्ताक्षर करेगा। ठीक उसी पन्ने में नीचे जहाँ उसने अपने पिता की मृत्यु का विवरण भरा था।’’3

प्रवासी कहानीकार विदेश में रहकर भी भारतीय परिवेश से अलग नहीं हो पाते। ऐसी स्थिति में भारतीयों की पीड़ा संवेदनात्मक धरातल पर कई स्तरों पर व्यक्त होती है। चाहे भारतीय परम्पराओं, रीति-रिवाज़ों की स्मृतियाँ हों अथवा विदेशी परिवेश को आत्मासात न कर पाने की स्थिति। ’पासपोर्ट का रंग’ एक ऐसी ही कहानी है जिसमें पंडित गोपालदास त्रिखा को ब्रिटिश पासपोर्ट लेने के लिए ब्रिटेन की महारानी के प्रति निष्ठा रखने के लिए क़समें खानी पड़ती हैं। लेकिन, उनका मन ब्रिटेन में रहने के लिए बिलकुल तैयार नहीं है। वह सोचता है ब्रिटेन की नागरिकता लेने से मर जाना बेहतर है क्योंकि उसने सारी जवानी इन गोरे साहबों से लड़ने में ही बिताई है जिसके लिए उसकी बाँह में गोली लगी थी। वृद्ध गोपालदास का देश प्रेम इस कहानी में स्पष्ट झलकता है। इसी तरह का देश प्रेम ’क़ब्र का मुनाफ़ा’ कहानी में भी दिखलाई देता है। भारत की विविधता में एकता को दिखलाने के लिए नादिरा के द्वारा कहे ये शब्द महत्वपूर्ण हैं, ’भारत का राष्ट्रपति मुसलमान, प्रधानमंत्री सिख और कांग्रेस की मुखिया ईसाई, क्या दुनिया के किसी और देश में हो सकता है।’ यही कारण है कि तेजेंद्र जी की कहानियाँ पाठक को पात्रों के मनोभावों को समझने के लिए विवश करती है। इन कथाओं में भारतीय और पाश्चात्य समाज और संस्कृति, मानवीयता, मनोविज्ञान, संवेदना और वेदना का भाव, मानव जीवन की सहजता और असहजता पात्रों की जिजीविषा और अस्मिता का चित्रण देखने को मिलता हैं। 

’कैंसर’ तेजेंद्र शर्मा की एक मार्मिक और पाठकों का दिल हिला देने वाली कहानी है। वहीं हाल ही में ’हंस’ में प्रकाशित बेतरतीब ज़िंदगी में लेखक ने एक लेखक की ज़िन्दगी का पारदर्शी चित्रण किया है। साहित्यकार का स्वाभिमान उसकी पूँजी होती है जिसमे नरेन एक अलग किरदार के रूप में सामने आया है। सच कहें तो तेजेंद्र शर्मा की कई कहानियों में प्रमुख पात्र के रूप में नरेन का नाम आना पाठक को सोचने के लिये मजबूर करता है। एक साक्षात्कार में मेरे द्वारा यह प्रश्न उनके समक्ष रखा गया था, जिसका उत्तर सुनकर मेरा पूर्ण समाधान हुआ। तेजेंद्र जी ने कहा नरेन शिव का पर्याय है। भगवन शिव जी की तरह समस्त सृष्टि का विषपान करता है और नरेन तेजेंद्र शर्मा की प्रतिछाया है। इसी तरह कैंसर जैसे असाध्य रोग पर आपने कई कहानियाँ लिखी हैं। दो दिन मैंने तेजेंद्र जी के सानिध्य में बिताये। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा था कि मृत्यु को एकाग्र होकर लिखना सरल नहीं है। ’पत्नी इंदु की मृत्यु कैंसर से हुई और जो समय मैंने इंदु के साथ व्यतीत किया और इस रोग को स्वयं जिया है। इसलिए कैंसर मेरी कई कहानियों में मृत्यु का तांडव करता हुआ दिखलाई देता है।’ आधुनिक जीवन के यथार्थ का एक बड़ा पक्ष स्त्री जीवन के साथ जुड़ा है। रोज़ाना अख़बार के माध्यम से दहेज़, कन्या भ्रूण हत्या और बलात्कार, पैतृक सम्पति से वंचित रखा जाना, विधवा एवं नौकरीपेशा महिलाओं की समस्याएँ हमारे समक्ष उपस्थित होती हैं। साहित्य के माध्यम से इन समस्याओं को समक्ष लाने का काम तेजेंद्र जी ने बड़ी ईमानदारी के साथ किया है। ’मुट्ठी भर रौशनी’ कहानी में जब सीमा का जन्म होता है तो घर में मातम छा जाता है। दादी कहती है ’अरे यह तो बीस हजार की डिग्री घर आ गयी, किस जन्म के पाप का फल मिला है’4 यहाँ सीमा की माँ को हज़ारों गलियाँ दे दी जाती हैं जैसे लड़की पैदा करने में उसका ही दोष था। भारत देश में जहाँ “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता” माना जाता था, आज स्वयं स्त्रियाँ ही अपनी जाति को समाप्त करने में लगी हैं। वही ’फ्रेम के बाहर’ कहानी नन्हीं सी नेहा के बाल मनोविज्ञान को दर्शाती है। दो जुड़वाँ भाइयों के जन्म के बाद नेहा की उपेक्षा, उसे सदैव के लिए घर की फ्रेम से बाहर कर देती है। नन्हीं सी नेहा माँ की बातों को बहुत गंभीरता से लेती हैं और दूध ख़ुद बनाने का प्रयत्न करती है। गरम दूध नेहा की यूनिफ़ॉर्म पर गिर जाता है और माँ उसे और अधिक डाँटती है तब उसके मन में विचार आता है “मम्मी ने एक बार भी नहीं पूछा कि नेहा तुम जल तो नहीं गयी?”

आँसुओं को अब आँखों की क़ैद में रोक पाना छोटी सी नेहा के लिये कठिन हो रहा था। दर्द शरीर से कहीं अधिक अब दिल में हो रहा था।5 

”सिलवटें’ एक ऐसी भारतीय लड़की की कहानी है, जिसका जीवन उसके साथ हॉस्टल में हुए बलात्कार के बाद कभी सहज नहीं हो पाया। इस कहानी में प्रिंसिपल को सुलक्षणा की नहीं बल्कि कॉलेज की बदनामी की चिंता है। १६ दिसम्बर २०१२ में पैरामेडिकल की छात्रा के साथ हुई सामूहिक बलात्कार की घटना, आसाराम और बाबा राम रहीम जैसे पाखंडी, धूर्त लोगों के द्वारा स्त्री की अस्मिता पर हाथ डालने की घटनाएँ भारत की संस्कृति को शर्मसार करती हैं। इसी तरह तरकीब, इन्तज़ाम, भँवर, एक बार फिर होली, देह की कीमत जैसी कहानियों में भारतीय स्त्री का दर्द हमारे समक्ष आता है। इसी तरह आधुनिक मानवीय संबंधों को दर्शाने वाली कहानियाँ हैं, मलबे की मालकिन, अपराध बोध का प्रेत, मुझे मार डाल बेटा, छूता फिसलता जीवन जैसी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ तेजेंद्र शर्मा को वैश्विक कहानीकार बनाती हैं। संपूर्ण कहानी जगत की शनाख़्त करने के पश्चात् उनके द्वारा विकसित की गयी रचनाशीलता की दुनिया को सहज ही पाठक जगत आत्मसात कर लेता है। इन कहानियों में हमारे परिवेश का सत्य झलकता है कि पूँजीवादी माहौल और उपभोक्तावाद किस तरह परिवार और रिश्तों-नातों को समाप्त करने में लगा है। हम पश्चिमी चकाचौंध से प्रभावित होकर अपने संस्कारों और मूल्यों को समाप्त कर रहे हैं। नस्लीय भेदभाव, पीढ़ीगत भेदभाव, रिश्तों का अजनबीपन जैसे आधुनिक आयामों को समक्ष रखकर जीवन का यथार्थ प्रस्तुतीकरण करनेवाले लेखकों में तेजेंद्र शर्मा की जीवनधर्मी कहानियाँ आती हैं। उनका साहित्य नये भावबोध का साहित्य है, जो स्वतंत्र सत्ता का निर्माण करता है। उनके पास पात्र निर्माण की शक्ति है। झूठ गढ़ने की अनिवार्य शर्त से वो परे रहे हैं और इसलिये वर्तमान वास्तविकता का लेखन सहज ढंग से उनकी लेखनी के द्वारा किया जा रहा है। 

सन्दर्भ सूची :

  1. कभी अपने कभी पराये तेजेंद्र शर्मा -संपादक आशीष कंधवे, पृ.14

  2. हिंदी चेतना कथा आलोचना विशेषांक –अक्टूबर २०१४, अतिथि संपादक सुशील सिद्धार्थ, पृ.99

  3. मौत एक मध्यांतर : तेजेंद्र शर्मा, हथेलियों में कम्पन- पृ.11

  4. क़ब्र का मुनाफ़ा, तेजेंद्र शर्मा पृ.४४

  5. दीवार में रास्ता, तेजेंद्र शर्मा, पृ.38

चेतना कला, वरिष्ठ महाविद्यालय,
१६, संकल्प नगर, मयूर पार्क रोड, औरंगाबाद-४३१००८ महाराष्ट्र
मो. नं. :९४२२७३४०३५
Email. : vishalasharma22@gmail.com


 

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