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03.16.2008 |
त्रिलोचन
: 'क्षण
के घेरे में घिरा नहीं'
लोकार्पित
|
हैदराबाद,
8
मार्च
2008
दक्षिण
भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद परिसर में डॉ. देवराज और अमन द्वारा
संपादित पुस्तक
`क्षण
के घेरे में घिरा नहीं`
के
लोकार्पण समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित
`स्वतंत्र
वार्ता`
के
संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने पुस्तक का लोकार्पण करते हुए कहा कि
`कवि
त्रिलोचन शब्दों के मर्मज्ञ थे। वे शब्दों पर अंतहीन चर्चा करते थे। शब्दों
पर अपने अधिकार के कारण वे ऐसी कविताएँ रच सके,
जो
देखने में अत्यंत सहज प्रतीत होती हैं,
परंतु उनमें लोक और वेद दोनों एक हो गए हैं। इसलिए त्रिलोचन की कविता का
समग्र पाठ अभी खुलना शेष है।`
उन्होंने कहा कि श्रद्धांजलि के रूप में होते हुए भी
`क्षण
के घेरे में घिरा नहीं`
शीर्षक पुस्तक त्रिलोचन की कविता के समग्र पाठ की दिशा में एक सार्थक
प्रयास है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में देश के विविध क्षेत्रों के कविता
प्रेमियों और विद्वानों ने अपने अनुभव,
दृष्टिकोण और विचार प्रकट किए हैं। डॉ. शुक्ल ने आगे कहा कि अपने संक्षिप्त
कलेवर के बावजूद यह कृति दो पंक्ति के अनुष्टुप की भाँति प्रभाव उत्पन्न
करने वाली है,
क्योंकि इसमें संवेदना का प्राणतत्व विद्यमान है और संवेदना के स्तर पर
हमें महाग्रंथों की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। कविता को एक भावक्षण बताते
हुए उन्होंने कहा कि त्रिलोचन न तो क्षण के घेरे में कैद हो सकते हैं और न
ही युग के घेरे में। उन्होंने त्रिलोचन को अननुकरणीय बताते हुए यह भी
जानकारी दी कि वे अवधी के अपनी तरह के इकलौते गद्यकार हैं।
मुख्य
वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए कवि पत्रकार डॉ. रामजी सिंह
`उदयन`
ने
कहा कि लोकार्पित पुस्तक त्रिलोचन को वादमुक्त दृष्टि से देखे जाने की एक
नई शुरूआत करती है। इस पुस्तक के हवाले से उन्होंने साहित्यकारों,
समीक्षकों व आलोचकों से त्रिलोचन की रचनाओं में मीन-मेख न निकालते हुए
उन्हें अपनी अवधूत साहित्यिक परंपरा में जीवित रखने की बात कही।
विशिष्ट
अतिथि के रूप में केंद्रीय विश्वविद्यालय के डॉ. आलोक पांडेय ने त्रिलोचन
की इस मान्यता की ओर ध्यान दिलाया कि वे कविता की पूरी पंक्ति लिखने के
पक्षधर थे और खोखला होता जा रहा आज का आदमी उनकी चिंता का मुख्य विषय था,
क्योंकि वे यह समझ चुके थे कि यह युग कबंध युग है जिसमें सबका सिर पेट में
धंसा हुआ है।
पुस्तक का
परिचय देते हुए समीक्षक चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने बताया कि
`क्षण
के घेरे में घिरा नहीं`
में
27
आलेख,
एक
साक्षात्कार,
एक
रिपोर्ट और त्रिलोचन की बारह कविताएँ तथा कुछ चित्र सम्मिलित हैं। उन्होंने
कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से त्रिलोचन के बारे में हिंदी ही नहीं,
हिंदीतर भाषी कई साहित्यकारों के भी मार्मिक विचार सामने आ सके हैं।
लोकार्पित
पुस्तक के प्रकाशन की योजना का परिचय देते हुए इसकी परामर्श समिति की
संयोजक डॉ. कविता वाचक्नवी ने बताया कि उत्तर प्रदेश के स्थान नजीबाबाद से
प्रकाशन का यह कार्य विविध प्रकार की तकनीकी असुविधाओं के कारण दुष्कर रहा,
तथापि संपादक मंडल के उत्साह और त्रिलोचन के प्रति हार्दिकता के भाव के
सहारे उन सबका निराकरण भी हो गया।
आरंभ में
कुंकुम,
अक्षत,
उत्तरीय,
पुस्तक तथा लेखनी समर्पित करके अतिथियों का स्वागत किया। डॉ.विनीता सिन्हा,
डॉ. मृत्युंजय सिंह,
सुनीता,
शिवकुमार राजौरिया,
शक्ति द्विवेदी,
डॉ. घनश्याम,
आर. संजीवनी,
वंदना शर्मा,
सुरेश इंगले,
के. नागेश्वर राव,
सी. नरसिंह मूर्ति,
निर्मल सुमिरता,
वी. एल. शारदा,
शीला,
डॉ. सुनीता सूद,
अनुराधा जैन,
आशा देवी सोमाणी तथा श्रीनिवास सोमाणी ने पुस्तक पर हुई चर्चा को जीवंत
बनाया।
अध्यक्ष
के रूप में संबोधित करते हुए वरिष्ठ कवि और कथाकार डॉ. किशोरी लाल व्यास ने
कहा कि सॉनेट परंपरा का हिंदीकरण और भारतीयकरण करने वाले महान कवि त्रिलोचन
की स्मृति को समर्पित
`क्षण
के घेरे में घिरा नहीं`
केवल श्रद्धांजलि भर की पुस्तक नहीं,
बल्कि उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विराटता का ऐसा सूत्रलेख है जिससे
आगामी शोधकर्ताओं को नई दिशा और दृष्टि मिल सकती है।
इस अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी में डॉ.किशोरी लाल व्यास, डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. कविता वाचक्नवी, डॉ. रामजी सिंह `उदयन`, चंद्र मौलेश्वर प्रसाद, सुषमा बैद, बी.बालाजी, तेजराज जैन, गुरुदयाल अग्रवाल, डॉ. एस. दत्ता, मालती, वसंत जीत सिंह, सत्यादेवी हरचंद, कन्हैयालाल अग्रवाल, मनोज कुमार चकोर, वीरप्रकाश लाहोटी सावन, गोविंद मिश्र, भंवर लाल उपाध्याय, आशा मिश्रा, विजय मिश्रा, सूरज प्रसाद सोनी और सविता सोनी ने विविध विधाओं की कविताएँ प्रस्तुत कीं। कवि गोष्ठी का संचालन बी. बालाजी ने त्रिलोचन शास्त्री की काव्य पंक्तियों के सहारे किया। संयोजक डॉ. ऋषभदेव शर्मा के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ। |
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