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05.03.2012 |
कभी रंजो अलम के गीत मैं गाया नहीं करता |
कभी रंजो अलम के गीत मैं गाया नहीं करता
बुरे देखूँ भले देखूँ, बुराई भी भलाई भी
मुझे मालूम है यह, चार दिन का मौज मेला है
मैं यह भी जानता हूँ, मुझको जन्नत मिल नहीं सकती
खुशामद चापलूसी की नहीं आदत रही अपनी
मुक़द्दर में लिखा जो है, मिलेगा देखना हमको
सुना है दूध की नदियाँ बहा करती हैं जन्नत में
मुझे जन्नत की बूढ़ी हूरों से यारो हैं क्या लेना
नहीं अब नेमतों की आरज़ू बाकी रही कोई
घुटन महसूस करता हूँ, मैं जन्नत के तस्सवुर से
उठा कर सर को चलता हूँ, भरोसा है मुझे खुद पर |
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