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अवार्ड वापसी गैंग की दास्तानें दर्द
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किसी शहर में एक अधेड़ महिला रहती थी। सब उसे भाभीजी
कहकर बुलाया करते थे। भाभीजी को बनने सँवरने का बड़ा शौक़ था। 5000 की
साड़ी पहनकर शॉपिंग करने निकलतीं तो जब तक 10-20 लाइक या कमेंट नहीं
मिल जाते, भाभीजी को अपनी साड़ी 500 से भी कम की ही लगती। ये सुन कर दूसरे व्यक्ति भी पानी डालना भूलकर अँगूठी को निहारने में लग गए। ये सुनते ही भाभीजी के दिल का दर्द जुबां से छलक ही पड़ा; बोलीं, "....करमजलो ... तीन दिन से अँगूठी पहने थी अगर पहले ही थोड़ी सी तारीफ़ कर देते तो घर में आग क्यों लगानी पड़ती?"..... यही हाल इन दिनों अवार्ड वापस करने में बाज़ी मारने वाले साहित्यकारों के झुण्ड का है। ... इन्हें अवार्ड क्यों मिला? कब मिला? किस लिए मिला? कोई नहीं जानता था, पर अब अवार्ड लौटा कर रोज़ नई सु्र्ख़ियाँ बना रहे हैं और सब उनके बारे में जानने को बेचैन हैं। ...और ये साहित्यकार मन ही मन सोच रहे हैं- "नासपीटों पहले ही हमें टीआरपी दे देते तो हम ये अवार्ड वापस करने की नौटंकी ही क्यों करते?" |